बुधवार, 15 जून 2016

Main kuchh aisi jagah ki talaash mein

मैं किसी ऐसी जगह की तलाश में हूं मोहसिन,
जहां गहरी तन्हाई तो हो पर अहसासे-तन्हाई न हो।

men kisi aesi jaga ki talash mein hon mohsin..
jahan gehri tanhai to ho per ahsas-e tanhai na ho..

बुधवार, 8 जून 2016

अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ

अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चराग़ों को माहताब करूँ

है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ

ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़दार करती है
कहीं अकेले में मिल जाये तो हिसाब करूँ

अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ

अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चराग़ों को माहताब करूँ

है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ

ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़दार करती है
कहीं अकेले में मिल जाये तो हिसाब करूँ

रविवार, 5 जून 2016

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे, हम आंसुओं कि तरह मुस्कुराने वाले थे

भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे, हम आंसुओं कि तरह मुस्कुराने वाले थे,
हमीं ने कर दिया एलान-ऐ-गुमराही वरना, हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे,
इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे, ये अश्क कौन से ऊंचे घराने वाले थे,
उन्हें करीब न होने दिया कभी मैंने, जो दोस्ती में हदें भूल जाने वाले थे,
मैं जिन को जान के पहचान भी नहीं सकता, कुछ ऐसे लोग मेरा घर जलाने वाले थे,
हमारा आलम ये था की हमसफ़र भी हमें, वही मिले जो बहुत याद आने वाले थे,
रजनीश... कैसी ताअल्लुक़ की राह थी जिस में, वही मिले जो बहुत दिल दुखाने वाले थे..

मेरा हमसफ़र जो अजीब है

मेरा हमसफ़र जो अजीब है, तो अजीबतर हूँ मैं भी;
मुझे जिन्दगी की खबर नहीं, उसे रास्तों का पता नहीं!

लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है

लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है;
प्यार अगर हो भी जाये किसी को, इसका इजहार करना मना है..!

उनकी महफ़िल में जब कोई जाये, पहले नजरें वो अपनी झुकाये;
वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है..!

जाग उठेंगे तो आंहें भरेंगे, हुस्नवालों को रुसवा करेंगे;
सो गये हैं जो फुरकत के मारे, उनको बेदार करना मना है..!

हमने की अर्ज़ ऐ बंदापरवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो ये हम पर;
बात सुनकर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है..!

सामने जो खुला है झरोखा, खा ना जाना कतील कहीं धोखा;
अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है..!

शायर: कतील शिफाई