मैं किसी ऐसी जगह की तलाश में हूं मोहसिन,
जहां गहरी तन्हाई तो हो पर अहसासे-तन्हाई न हो।
men kisi aesi jaga ki talash mein hon mohsin..
jahan gehri tanhai to ho per ahsas-e tanhai na ho..
मैं किसी ऐसी जगह की तलाश में हूं मोहसिन,
जहां गहरी तन्हाई तो हो पर अहसासे-तन्हाई न हो।
men kisi aesi jaga ki talash mein hon mohsin..
jahan gehri tanhai to ho per ahsas-e tanhai na ho..
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चराग़ों को माहताब करूँ
है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ
ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़दार करती है
कहीं अकेले में मिल जाये तो हिसाब करूँ
अब अपनी रूह के छालों का कुछ हिसाब करूँ
मैं चाहता था चराग़ों को माहताब करूँ
है मेरे चारों तरफ़ भीड़ गूँगे बहरों की
किसे ख़तीब बनाऊँ किसे ख़िताब करूँ
ये ज़िंदगी जो मुझे क़र्ज़दार करती है
कहीं अकेले में मिल जाये तो हिसाब करूँ
भला ग़मों से कहाँ हार जाने वाले थे, हम आंसुओं कि तरह मुस्कुराने वाले थे,
हमीं ने कर दिया एलान-ऐ-गुमराही वरना, हमारे पीछे बहुत लोग आने वाले थे,
इन्हें तो ख़ाक में मिलना ही था कि मेरे थे, ये अश्क कौन से ऊंचे घराने वाले थे,
उन्हें करीब न होने दिया कभी मैंने, जो दोस्ती में हदें भूल जाने वाले थे,
मैं जिन को जान के पहचान भी नहीं सकता, कुछ ऐसे लोग मेरा घर जलाने वाले थे,
हमारा आलम ये था की हमसफ़र भी हमें, वही मिले जो बहुत याद आने वाले थे,
रजनीश... कैसी ताअल्लुक़ की राह थी जिस में, वही मिले जो बहुत दिल दुखाने वाले थे..
मेरा हमसफ़र जो अजीब है, तो अजीबतर हूँ मैं भी;
मुझे जिन्दगी की खबर नहीं, उसे रास्तों का पता नहीं!
लिख दिया अपने दर पे किसी ने, इस जगह प्यार करना मना है;
प्यार अगर हो भी जाये किसी को, इसका इजहार करना मना है..!
उनकी महफ़िल में जब कोई जाये, पहले नजरें वो अपनी झुकाये;
वो सनम जो खुदा बन गये हैं, उनका दीदार करना मना है..!
जाग उठेंगे तो आंहें भरेंगे, हुस्नवालों को रुसवा करेंगे;
सो गये हैं जो फुरकत के मारे, उनको बेदार करना मना है..!
हमने की अर्ज़ ऐ बंदापरवर, क्यूँ सितम ढा रहे हो ये हम पर;
बात सुनकर हमारी वो बोले, हमसे तकरार करना मना है..!
सामने जो खुला है झरोखा, खा ना जाना कतील कहीं धोखा;
अब भी अपने लिए उस गली में, शौक-ए-दीदार करना मना है..!
शायर: कतील शिफाई