बुधवार, 21 सितंबर 2016

Ik lafz-e-mohabbat ka adana sa fasana hai

इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है

इक लफ्ज़-ए-मोहब्बत का अदना सा फ़साना है
सिमटे तो दिले आशिक फैले तो ज़माना है

ये किस का तसव्वुर है ये किस का फ़साना है
जो अश्क है आखों में तस्बीह का दाना है

हम इश्क में मारों का बस इतना फ़साना है
रोने को नहीं कोई हसने को ज़माना है

वो और वफ़ा दुश्मन मानेंगे न माना है
सब दिल कि शरारत है आंखो क बहाना है

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क ने जाना है
हम खाक नशीनो की ठोकर में ज़माना है

वो हुस्न-ओ-जमाल उन का ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है मरने क ज़माना है

या वो थे खफा हमसे या हम थे खफा उनसे
कल उनका ज़माना था आज अपना ज़माना है

अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत क मासुम फ़साना है

आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है

है इश्क़-ए-जुनून-पेशा हाँ इश्क़-ए -जुनून-पेशा
आज एक सितमगर को हंस हंस के रुलाना है

ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजे
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

क्या शर्त-ए-मोहब्बत है क्या शर्त-ए-ज़माना है
आवाज़ भी ज़ख़्मी है और गीत भी गाना है
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है
किश्ती भी पुरानी है तूफ़ा को भी आना है

समझे या ना समझे वो अंदाज़ मोहब्बत के
एक शक्स को आँखों से हाल-ए-दिल सुनाना है

भोली सी अदा कोई फिर इश्क की ज़िद पर है
फिर आग का दरिया है और डूब के जाना है

दिल संग-ए-मलामत का हर चन्द निशाना है
दिल फिर भी मेरा दिल है दिल ही तो जमाना है

आंसू तो बहुत से हैं आँखों में जिगर लेकिन
बिंध जाए वो मोती है रह जाए सो दाना है

जिगर मुरादाबादी