घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर जानेगा अब भी तू न मिरा घर कहे बग़ैर
कहते हैं जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न
जानूँ किसी के दिल की मैं क्यूँकर कहे बग़ैर
काम उस से आ पड़ा है कि जिस का जहान में
लेवे न कोई नाम सितमगर कहे बग़ैर
जी में ही कुछ नहीं है हमारे वगरना हम
सर जाए या रहे न रहें पर कहे बग़ैर
छोड़ूँगा मैं न उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर
मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तुगू में काम
चलता नहीं है दशना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
हर चंद हो मुशाहिदा-ए-हक़ की गुफ़्तुगू
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
बहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इल्तिफ़ात
सुनता नहीं हूँ बात मुकर्रर कहे बग़ैर
'ग़ालिब' न कर हुज़ूर में तू बार बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर
घर जब बना लिया तेरे दर पर कहे बग़ैर
जाएगा अब भी तू ना मेरा घर कहे बग़ैर
अब मैंने अपना घर तेरे दरवाज़े पर ही बना लिया है। अब तुझे अपने ख़ुद के घर में जाने के लिए मेरे घर में से होकर जाना पड़ेगा। अब तू ये भी नहीं कह सकता के मैं तुम्हारे घर कैसे आऊँ मुझे तुम्हारे घर का पता मालूम ही नहीं है।
कहते हैं जब रही न मुझे ताक़त-ए-सुख़न
जानूँ किसी के दिल की मैं क्यों कर कहे बग़ैर
जब मैं अपनी जिस्मानी कमज़ोरी की वजह से कुछ बोलने के क़ाबिल नहीं रहा तो तुम ये कहने लगे हो के वो तो मुँह से कुछ कहता ही नहीं मैं उसके दिल की बात कैसे जानूँ के वो क्या चाहता है।
काम उससे आ पड़ा है के जिसका जहान में
लेवे न नाम कोई सितमगर कहे बग़ैर
वो ज़ुल्म और सितम ढाने में इतना मशहूर है के उसे हर कोई ज़ालिम कहता है। मेरी बदनसीबी देखिए के मैं उसी पर आशिक़ हो गया हूँ। अब मेरा कोई भी काम कैसे पूरा होगा।
जी में ही कुछ नहीं है हमारे वरना हम
सर जाए या रहे न रहें पर कहे बग़ैर
हमारी आदत है कि हम हमेशा सच बात कह देते हैं इसके लिए हमें कितना ही बड़ा नुकसान क्यों न उठाना पड़े। हम उसकी परवाह नहीं करते। लेकिन आज हमारे दिल में कहने के लिए ऐसा कुछ नहीं है वरना हम अपने सर के कट जाने की भी परवाह नहीं करते और वह बात कह देते।
छोड़ूँगा मैं ना उस बुत-ए-काफ़िर का पूजना
छोड़े न ख़ल्क़ गो मुझे काफ़र कहे बग़ैर
मैं उस मेहबूब की परिस्तिश करना कभी नहीं छोड़ूँगा चाहे ज़माना मुझे काफ़िर होने का फ़तवा ही क्यों न दे दे।
मक़्सद है नाज़-ओ-ग़म्ज़ा वले गुफ़्तुगू में काम
चलता नहीं है दशना-ओ-ख़ंजर कहे बग़ैर
मेरा मकसद तो सिर्फ इतना है कि बातों में शोखी बनी रहे क्यूँ कि उसके बगैर कोई काम शुरू भी नहीं होता है.
हर चन्द हो मुशाहेदा-ए-हक़ की गुफ़्तगू
बनती नहीं है बादा-ओ-साग़र कहे बग़ैर
शायरी में चाहे अल्लाह की क़ुदरत का बखान क्यों न हो रहा हो ऐसे मौक़ों पर भी शराब, जाम, पैमाने और मैख़ाने का सहारा लेना पड़ता है। इनका सहारा लिए बग़ैर हक़ के मुशाहेदे का बखान भी मुश्किल है।
बेहरा हूँ मैं तो चाहिए दूना हो इलतिफ़ात
सुनता नहीं हूँ बात मुकररर कहे बग़ैर
मुझे कम सुनाई देता है, इसलिए मुझ पर दोहरी मेहरबानी होना चाहिए। जब तक कोई बात दोहराई न जाए मुझे सुनाई नहीं देती है।
ग़ालिब न कर हुज़ूर में तू बार-बार अर्ज़
ज़ाहिर है तेरा हाल सब उन पर कहे बग़ैर
ग़ालिब तू उनके सामने बार-बार अपना हाल-ए-ज़ार क्यों अर्ज़ कर रहा है। उन्हें तेरा हाल, तेरी परेशानियाँ सब कुछ मालूम है। तू अपने मुँह से कुछ न कहेगा तो भी तेरे हाल से वो ग़ाफ़िल नहीं।
Ghazal Sher
सोमवार, 12 जून 2017
सोमवार, 15 मई 2017
Aah Ko Chaahiye Ik Umr...Mirza Ghalib || आह को चाहिए इक उम्र...मिर्ज़ा ग़ालिब
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक
कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक
हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक
परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक
यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल
गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
मंगलवार, 2 मई 2017
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठाके हाथ - साग़र निज़ामी/ निज़ाम रामपुरी
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ
ये भी नया सितम है हिना तो लगाएँ ग़ैर
और उस की दाद चाहें वो मुझ को दिखा के हाथ
बे-इख़्तियार हो के जो मैं पाँव पर गिरा
ठोड़ी के नीचे उस ने धरा मुस्कुरा के हाथ
गर दिल को बस में पाएँ तो नासेह तिरी सुनें
अपनी तो मर्ग-ओ-ज़ीस्त है उस बेवफ़ा के हाथ
वो ज़ानुओं में सीना छुपाना सिमट के हाए
और फिर सँभालना वो दुपट्टा छुड़ा के हाथ
क़ासिद तिरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आ के हाथ
ऐ दिल कुछ और बात की रग़बत न दे मुझे
सुननी पड़ेंगी सैकड़ों उस को लगा के हाथ
वो कुछ किसी का कह के सताना सदा मुझे
वो खींच लेना पर्दे से अपना दिखा के हाथ
देखा जो कुछ रुका मुझे तो किस तपाक से
गर्दन में मेरी डाल दिए आप आ के हाथ
फिर क्यूँ न चाक हो जो हैं ज़ोर-आज़माइयाँ
बाँधूंगा फिर दुपट्टा से उस बे-ख़ता के हाथ
कूचे से तेरे उट्ठें तो फिर जाएँ हम कहाँ
बैठे हैं याँ तो दोनों जहाँ से उठा के हाथ
पहचाना फिर तो क्या ही नदामत हुई उन्हें
पंडित समझ के मुझ को और अपना दिखा के हाथ
देना वो उस का साग़र-ए-मय याद है 'निज़ाम'
मुँह फेर कर इधर को उधर को बढ़ा के हाथ
सोमवार, 2 जनवरी 2017
कोई मुस्कुरा दे तो
सीने पे तीर खा कर भी अगर कोई मुस्कुरा दे तो......
निशाना लाख अच्छा हो मगर बेकार जाता है....
निशाना लाख अच्छा हो मगर बेकार जाता है....
तुम कहीं और के मुसाफिर हो
हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो
हमारा शहर तो.. बस यूँ ही. रास्ते में आया था !!!!
हमारा शहर तो.. बस यूँ ही. रास्ते में आया था !!!!
मैं आदमी होता चला गया
नफ़रत का भाव मैं ज्यों-ज्यों खोता चला गया
रफ़्ता-रफ़्ता मैं आदमी होता चला गया।
रफ़्ता-रफ़्ता मैं आदमी होता चला गया।
बुधवार, 23 नवंबर 2016
Meri Dastan-e-Hasrat wo Suna Suna ke Roye
मिरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोए
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए
तिरी बेवफ़ाइयों पर तिरी कज-अदाइयों पर
कभी सर झुका के रोए कभी मुँह छुपा के रोए
जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-ग़म की आप-बीती
कई रो के मुस्कुराए कई मुस्कुरा के रोए
~~सैफ़ुद्दीन सैफ़
Listen Online:
By Munni Begum
By Ustad Amaanat Ali Khan
By Sabri Brothers
मिरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोए
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए
मिरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-ना-तवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोए
तिरी बेवफ़ाइयों पर तिरी कज-अदाइयों पर
कभी सर झुका के रोए कभी मुँह छुपा के रोए
जो सुनाई अंजुमन में शब-ए-ग़म की आप-बीती
कई रो के मुस्कुराए कई मुस्कुरा के रोए
~~सैफ़ुद्दीन सैफ़
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By Munni Begum
By Ustad Amaanat Ali Khan
By Sabri Brothers
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