गुरुवार, 3 नवंबर 2016

Majboor Kar Ke Fir Mujhe Ek Baar Le Chalo - Shahid Kabir

मजबूर करके फिर मुझे मेरे यार ले चलाे
उसकी गली में फिर मुझे इक बार ले चलाे
मजबूर करके फिर मुझे मेरे यार ले चलाे
उसकी गली में फिर मुझे इक बार ले चलाे

शायद ये मेरा वहम हो मेरा ख़याल हो
मुमकिन है मेरे बाद उसे मेरा मलाल हो
पछता रहा हो फिर मुझे दर से उठा के वो
बैठ हो मेरी राह में आँखें बिछा के वो
उसने भी तो किया था मुझे प्यार, ले चलो
उसकी गली में फिर मुझे इक बार ले चलाे

उसकी गली को जानता पहचानता हूँ मैं
वाे मेरे क़त्लगाह है ये मानता हूँ मैं
उसकी गली में मौत मुकद्दर की बात है
शायद ये मौत अहल-ए-वफ़ा की हयात है
मैं ख़ुद भी मौत का हूँ तलबदार ले चलो
उसकी गली में फिर मुझे इक बार ले चलाे

अब उस गली में कोई ना आएगा मेरे बाद
उस दर पे ख़ून कौन बहाएगा मेरे बाद
मैने तो संग-ओ-किशत से टकरा के अपना सर
गु़लनार कर दिए थे लहू से वो बाम-ओ-दर
फिर मुंतज़र है वो दर-ओ-दीवार ले चलो
उसकी गली में फिर मुझे इक बार ले चलाे
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